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Wednesday 26 September 2012

ओ मेरी सुरमई प्रिये !



ओ मेरी सुरमई प्रियतमे
तुम्हे याद है,
जब मुझे अपनी आँखों से
तुम महुवे का रस पिलाती थी
और में मदहोश होकर
तुम्हारी गोद में सर रखकर
लेट जाता था-तब तुम
अपनी नर्म कोमल अँगुलियों से
मेरे बालो में 
कंघी करती रहती थी...

ओ हिरनी सी आँख वाली 
मेरी प्रेयसी
तुम्हे याद है
जब मेरे गालों पर, तुम अपने
केसर से महकते बाल बिखेर देती थी
और में उन बालों के स्पर्श से-
रोमांचित हो
तुम्हे और नजदीक खिंच लेता था
तब तुम मेरी पौरषीय गंध से
अपनी आँखे बंद कर  
मेरे सीने में दुबक जाती थी...

ओ मेरी 
सुरमई प्रिये !


नज़्म संग्रह 'हो न हो' से...

सुधीर  मौर्य  'सुधीर' 
 

Wednesday 19 September 2012

सात बसंतो का प्रेम...



ओ मेरे गावं की
नोखेज़ दोशीजा !
मेरी प्रियतमा...
मैंने महसूस किया है
तेरी पिंडलियों की 
थरथराहट को
उस वक़्त
जब म्रेरे होठों के लम्स से
तेरे होठ
भीगती रात में सरशार हुए...

अरी ओ रसगंधा !
मेरे जन्मो की प्रेयसी 
इसी जन्म में चुकणी थी क्या
तेरे बदन की मह्वाई  गंध
या आठवां जन्म था हमारा
जो तूं सात बसंतो की 
मेरी प्रीत को
भूल गई और
फाल्गुनी बयार में
एक गैर की शरीके हयात हुई...
यकीन मान, उसी दिन से
तेरी ज़ीस्त में दिन और मेरी रात हुई...

नज़्म संग्रह 'हो न हो' से...
सुधीर मौर्य 'सुधीर'

Friday 14 September 2012

गैरों की बज़्म में यूं बेरिदा ही झमके...



तेरे इश्क में सितमगर कैसे अज़ाब देखे
काँटों पे ज़बीं रखे रोते गुलाब देखे

गैरों की बज़्म में यूं बेरिदा ही झमके
हमने तो रुख पे तेरे हरदम नकाब देखे

बनके रकीबे जां तुम उल्फत में मुस्कराए
मिटा के मुझको तुने कैसे शवाब देखे

इश्क की बला से कोई बच न सका 'सुधीर'
इसके कहर से खाक में मिलते नवाब देखे....

ग़ज़ल संग्रह 'आह' से...

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
  

Saturday 8 September 2012

प्रीत का रंग...



इन दिनों
पलाश सा खिला है
चेहरा उसका...

कोयल सी कुहक है
होठों पे उसके...

झील सी आँखें करती हैं
अठखेलियाँ उसकी...

खिलने लगी है
चंद्रिमा पूनम की
गालों में उसके...

हिरन सी लचक है
चाल में उसकी...

लगता है जेसे
अवतरित हुआ है मधुमास
शरीर में उसके...

हो न हो...
चड़ने लगा है उसपे
प्रीत का रंग किसी-
का
इन दिनों...

कविता संग्रह 'हो न हो' से...