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Monday 28 May 2012
Friday 25 May 2012
Wednesday 23 May 2012
तेरा अक्स
मेरे हाथ में
जाम दे दिया
कुछ इसका पता नहीं
हर शाम-हर रात
हर सुबह
बस में और
मेरा जाम
मुझे लगा
अब जिन्दगी
चैन से कट जायगी
ग़लतफ़हमी थी मेरी
अब तो हाथ में
जाम लेने से भी
डर लगता हे
न जाने क्यों
तेरा अक्स
मुझे अब
उसमे नज़र आता हे.
'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
09699787634
Friday 18 May 2012
कुछ हुस्न-ऐ-जाना
दोशीजा होठो पे शबनम के कतरे
लचके बदन पे कसाव जो निखरे
सावन को खुमारे जिस्म की याद
कंधो पे खुलकर ज़ुल्फ़ हरसू बिखरे.
ज़ुल्फ़ खुल गए रात की अंधियारी हे
दुनिया पे उनका खुमार तारी हे
सितारों का सुकूत दस्तक देता हे
कोई तूफ़ान आने की तय्यारी हे.
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869
०९६९९७८७६३४
Tuesday 15 May 2012
असीरी
शफक की धुप में
मे जाकर छत पर तनहा खड़ा हो गया
पड़ोस की छत पे
बल बनाती हुई लड़की
मुस्करा दी
मैंने उसकी जानिब
जब कोई तवज्जो न दी
तो वो उतर कर
निचे चली गई
काश कुछ साल पहले
में एसा कर पाता
किसी की जुल्फों की
असीरी से खुद को बचा पाता
शायद तब
ये शफक ये शब्
मेरे तनहा न होते
या फिर वही बेवफा न होते
में- छत से उतर कर
एकांत कमरे में
तनहा बेथ गया
'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद,उन्नाव-२४१५०२
०९६९९७८७६३४
Saturday 12 May 2012
उसर में कास फूल रही थी (१)
सपना था
उस की आँखों में
पढने का, लिकने का
आसमान में उड़ने का
चाँद सितारे पाने का
धनक धनक हो जाने का
वो थी सुन्दर
वो थी दलित
उसका यही अभिशाप था
वो थी मेधावी
बचपन से
पर उसका गरीब बाप था.
आते ही किशोर अवस्था के
उसे गिद्ध निगाहें
ताकने लगी
गाहे बगाहे दबंगों की
छिटाकशी वो सुनने लगी
एक रोज़ गावं के उसर में
कुछ हाथो ने
उसको खीच लिया
कपडे करके सब तार तार
जबरन सीने में भीच लिया
वो बेबस चिड़िया
फरफराती हुई
दबंगों के हाथो में झूल रही थी
उस घडी गावं के
उसर में,
कास फूल रही थी
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
पिन- २४१५०२०९६९९७८७६३४/09619483963
Friday 11 May 2012
तेरा शहर तेरा गाँव
ये तेरा शहर
ये तेरा गाँव
मुबारक हो तुझे
मेरा क्या हे
में तो बस मेहमान हूँ
दो पल के लिए
महकता ही रहे
चहकता ही रहे
ये तेरा घर
ये आँगन तेरा
क्या हुआ
जोन न रहा कोई फूल
मेरी ग़ज़ल के लिए
तूं सवरती ही रहे
तूं निखरती ही रहे
अपने साजन के लिए
भूल जा दिल से मुझे
तूं अपने कल के लिए
'सुधीर' के दामन में
ड़ाल दो
सब कांटे अपने
हर फूल हर सितारा
रख ले तूं
अपने आचल के लिए.
'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869
09699787634
Wednesday 9 May 2012
दिनचर्या
दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई
दिल और भी तब बेचैन हुआ
जब साँझ ढली और रात हुई
घडी की हर एक टिक टिक का
सम्बन्ध बना मेरी करवट से
तेरी याद में कितना तडपा हूँ
पूछो चादर की सलवट से
छिपते ही आखिरी तारे के
मेरी आँख की नदिया फूट पड़ी
सूरज की पहली किरन के संग
तेरी यादें मुझ पर टूट पड़ी
दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४
Tuesday 8 May 2012
आँख की नदिया सूख गई हे
सुन्दर गोरी और
जवान
ऊपर से ऊँची
जात की वो.
अपने घर के
नोकर से ही
बाज़ी हार गई
जज्बात की वो.
कुछ आँखों ने था
देख लिया
छुप-छुप कर
मिलते बागो में
वो तीन दिनों से
गायब हे
जो रहता था
उसकी आँखों में.
कल शाम नहर के बांध में
उसकी ही
लाश पाई गई
वो रो न सकी
कुछ कह न सकी
उसकी आँखों की नदिया
हो न हो
शायद सूख गई.
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
पिन- २४१५०२
09699787634
जवान
ऊपर से ऊँची
जात की वो.
अपने घर के
नोकर से ही
बाज़ी हार गई
जज्बात की वो.
कुछ आँखों ने था
देख लिया
छुप-छुप कर
मिलते बागो में
वो तीन दिनों से
गायब हे
जो रहता था
उसकी आँखों में.
कल शाम नहर के बांध में
उसकी ही
लाश पाई गई
वो रो न सकी
कुछ कह न सकी
उसकी आँखों की नदिया
हो न हो
शायद सूख गई.
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
पिन- २४१५०२
09699787634
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